Tuesday, September 14, 2010

" मुझसे बिछड कर "

"मुझसे बिछड कर रोती हो गी ,
ग़म को कितना समझती हो गी,
जिन राहो पर चलती हो गी ,
मेरी याद मैं तड्पती हो गी ,
मुझसे जो न कह सकती थी ,
अब वो खुद से कहती हो गी ,
गुजरी बाते गुज़रे लम्हें ,
याद कर के वो रोती हो गी ,
फुर्सत तुम को हो के न हो ,
ख़त फिर भी लिखती हो गी,
और लिख के, जलने से कुछ पहले ,
उन को वो खुद भी पढ़ती हो गी। "

जो एक बार देखो...







मेरी नज़र से कभी जो एक बार देखो,
अपने लिए प्यार ही प्यार और चाहत तो देखो !

तुम को सब बताने में लग जाएगी मुदत मुझे,
हो सके तुम हर लम्हे को महसूस करके तो देखो !

ढुंढती है हर तरफ दिल की बेक़रारी जिसे,
इस दिल मे उसे किधर किधर तो देखो !

होना न कभी तुम्हे मुझ से जुदा,
कबूल होते हुए काश मेरी दुआ को देखो !

नहीं चाहिए अपनी चाहत का कोई सिला,
बस तेरी नज़र में है हम, अपने आप को तो देखो !

Monday, September 13, 2010

मेरी याद .......


जब उसको मेरी याद आया करेगी,
तब वो मेरी गजल गुनगुनाया करेगी!
उठकर देखेगी कभी तस्वीर मेरी,
फिर उसे सिने से लगाया करेगी!
जब भी नजर आएगी मेरी निशानिया,
उनको दमन मैं छुपाया करेगी!
बीते दिनों की बीती कहानी,
छुप छुप के गेरों को बताया करेगी!
रखा है जो उसने अंधरे मैं “प्यार”,
भूल पर अपनी पछताया करेगी!…

जा रहा था वो !




दूर से देखा,
किसी के साथ जा रहा था वो !
आवाज़ आ रही थी जैसे,
गुनगुना रहा था वो!
मस्ती में चलता ऐसे,
इतरा रहा था वो!
नज़दीक पहुंचे तो,
तस्वीर ही बदल गयी!
न चाहते हुए भी,
आँखे मचल गयी!
अकेला ही था वो उस दिन,
लाद्खादा रहा था वो!
वो रो रहा था उस दिन,
घबरा रहा था वो!
दूर से न पहचाना,
वों कौन शख्स था!
कोहरा घना था उस दिन,
वो हमारा ही अक्स था!






प्यार ने पूछा ?








प्यार ने पूछा ज़िन्दगी क्या है?
हमने कहा तेरे बिन कुछ नहीं।
उसने फिर पूछा दर्द क्या है?
हमने कहा जब तू संग नहीं।
प्यार ने पूछा मोहब्बत कहा है?
हमने कहा मेरे दिल में कही।
उसने फिर पूछा कहा खुदा है?
हमने ने कहा तुझमे कही।

प्यार ने पूछा हमसे इश्क क्यों है?
हमने कहा उसको भी पता नहीं ।
उसने फिर पूछा इतनी बेचैनी क्यों है?
हमने कहा इसमें कसूर मेरा नहीं।

प्यार ने पूछा एतबार करोगे मेरा?
हमने कहा तुमसे बढकर कोई नहीं।
उसने फिर पूछा साथ दोगे मेरा?
हमने कहा क्यों नहीं क्यों नहीं!!…

चाह तो बहुत मगर ...


उसको चाह तो बहुत मगर वो मिला ही नहीं !
लाख कोशिश की मगर फासला मिटा ही नहीं !

उसको ज़माने ने मजबूर इस क़दर कर दिया,
के मेरी किसी सदा पे वो रुका ही नहीं!
खुदा से झोली फैला के माँगा था उसे,
खुदा ने मेरी किसी दुआ को सुना ही नहीं !

हर एक से पुछा सबब उसके न मिलने का,
हर एक ने बताया के वो मेरे लिए बना ही नहीं !

मैं तमाम उम्र की कोशिश के बावजूद नाकाम हो गया,
और वो उसको मिल गया जिस ने उसे कभी माँगा ही नहीं !

इतनी शिद्दत से चाह मगर तू किसी और का हो गया,
शायद इस जहाँ में वफ़ा का कोई सिला ही नहीं….!