Tuesday, September 14, 2010

" मुझसे बिछड कर "

"मुझसे बिछड कर रोती हो गी ,
ग़म को कितना समझती हो गी,
जिन राहो पर चलती हो गी ,
मेरी याद मैं तड्पती हो गी ,
मुझसे जो न कह सकती थी ,
अब वो खुद से कहती हो गी ,
गुजरी बाते गुज़रे लम्हें ,
याद कर के वो रोती हो गी ,
फुर्सत तुम को हो के न हो ,
ख़त फिर भी लिखती हो गी,
और लिख के, जलने से कुछ पहले ,
उन को वो खुद भी पढ़ती हो गी। "

3 comments:

  1. अच्छा प्रयास है...यूं ही लिखते रहिए

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  2. बहुत अच्छी जानकारी....ज्ञानवर्धन के लिए आभार.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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