Monday, September 13, 2010

चाह तो बहुत मगर ...


उसको चाह तो बहुत मगर वो मिला ही नहीं !
लाख कोशिश की मगर फासला मिटा ही नहीं !

उसको ज़माने ने मजबूर इस क़दर कर दिया,
के मेरी किसी सदा पे वो रुका ही नहीं!
खुदा से झोली फैला के माँगा था उसे,
खुदा ने मेरी किसी दुआ को सुना ही नहीं !

हर एक से पुछा सबब उसके न मिलने का,
हर एक ने बताया के वो मेरे लिए बना ही नहीं !

मैं तमाम उम्र की कोशिश के बावजूद नाकाम हो गया,
और वो उसको मिल गया जिस ने उसे कभी माँगा ही नहीं !

इतनी शिद्दत से चाह मगर तू किसी और का हो गया,
शायद इस जहाँ में वफ़ा का कोई सिला ही नहीं….!

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