Tuesday, September 14, 2010

" मुझसे बिछड कर "

"मुझसे बिछड कर रोती हो गी ,
ग़म को कितना समझती हो गी,
जिन राहो पर चलती हो गी ,
मेरी याद मैं तड्पती हो गी ,
मुझसे जो न कह सकती थी ,
अब वो खुद से कहती हो गी ,
गुजरी बाते गुज़रे लम्हें ,
याद कर के वो रोती हो गी ,
फुर्सत तुम को हो के न हो ,
ख़त फिर भी लिखती हो गी,
और लिख के, जलने से कुछ पहले ,
उन को वो खुद भी पढ़ती हो गी। "

जो एक बार देखो...







मेरी नज़र से कभी जो एक बार देखो,
अपने लिए प्यार ही प्यार और चाहत तो देखो !

तुम को सब बताने में लग जाएगी मुदत मुझे,
हो सके तुम हर लम्हे को महसूस करके तो देखो !

ढुंढती है हर तरफ दिल की बेक़रारी जिसे,
इस दिल मे उसे किधर किधर तो देखो !

होना न कभी तुम्हे मुझ से जुदा,
कबूल होते हुए काश मेरी दुआ को देखो !

नहीं चाहिए अपनी चाहत का कोई सिला,
बस तेरी नज़र में है हम, अपने आप को तो देखो !

Monday, September 13, 2010

मेरी याद .......


जब उसको मेरी याद आया करेगी,
तब वो मेरी गजल गुनगुनाया करेगी!
उठकर देखेगी कभी तस्वीर मेरी,
फिर उसे सिने से लगाया करेगी!
जब भी नजर आएगी मेरी निशानिया,
उनको दमन मैं छुपाया करेगी!
बीते दिनों की बीती कहानी,
छुप छुप के गेरों को बताया करेगी!
रखा है जो उसने अंधरे मैं “प्यार”,
भूल पर अपनी पछताया करेगी!…

जा रहा था वो !




दूर से देखा,
किसी के साथ जा रहा था वो !
आवाज़ आ रही थी जैसे,
गुनगुना रहा था वो!
मस्ती में चलता ऐसे,
इतरा रहा था वो!
नज़दीक पहुंचे तो,
तस्वीर ही बदल गयी!
न चाहते हुए भी,
आँखे मचल गयी!
अकेला ही था वो उस दिन,
लाद्खादा रहा था वो!
वो रो रहा था उस दिन,
घबरा रहा था वो!
दूर से न पहचाना,
वों कौन शख्स था!
कोहरा घना था उस दिन,
वो हमारा ही अक्स था!






प्यार ने पूछा ?








प्यार ने पूछा ज़िन्दगी क्या है?
हमने कहा तेरे बिन कुछ नहीं।
उसने फिर पूछा दर्द क्या है?
हमने कहा जब तू संग नहीं।
प्यार ने पूछा मोहब्बत कहा है?
हमने कहा मेरे दिल में कही।
उसने फिर पूछा कहा खुदा है?
हमने ने कहा तुझमे कही।

प्यार ने पूछा हमसे इश्क क्यों है?
हमने कहा उसको भी पता नहीं ।
उसने फिर पूछा इतनी बेचैनी क्यों है?
हमने कहा इसमें कसूर मेरा नहीं।

प्यार ने पूछा एतबार करोगे मेरा?
हमने कहा तुमसे बढकर कोई नहीं।
उसने फिर पूछा साथ दोगे मेरा?
हमने कहा क्यों नहीं क्यों नहीं!!…

चाह तो बहुत मगर ...


उसको चाह तो बहुत मगर वो मिला ही नहीं !
लाख कोशिश की मगर फासला मिटा ही नहीं !

उसको ज़माने ने मजबूर इस क़दर कर दिया,
के मेरी किसी सदा पे वो रुका ही नहीं!
खुदा से झोली फैला के माँगा था उसे,
खुदा ने मेरी किसी दुआ को सुना ही नहीं !

हर एक से पुछा सबब उसके न मिलने का,
हर एक ने बताया के वो मेरे लिए बना ही नहीं !

मैं तमाम उम्र की कोशिश के बावजूद नाकाम हो गया,
और वो उसको मिल गया जिस ने उसे कभी माँगा ही नहीं !

इतनी शिद्दत से चाह मगर तू किसी और का हो गया,
शायद इस जहाँ में वफ़ा का कोई सिला ही नहीं….!

Tuesday, September 7, 2010

मोहब्तें सिखाता रहा....


वो अपनी सारी नफरतें मुझ पे लुटाता रहा,
मेरा दिल जिस को सदा मोहब्तें सिखाता रहा,

उस की आदत का ज़रा ये पहलू तो देखो,
मुझ से किये वादे वो किसी और से निभाता रहा,

कुछ खबर नहीं के वो क्या चाहता था,
के ताल्लुक तोड़ कर भी मुझ को आजमाता रहा,

टूटे हुए ताल्लुक में भी कितनी मजबूती है,
मैं जितना भुलाता रहा, वो उतना ही याद आता रहा...!!!

भुलाने के लिए.....


उठाया था जाम एक गम भुलाने के लिए,
वही सीने से लिपट गया मुझे और सताने के लिए,

उस से कह दो ना आया करे महफ़िल में,
उस की याद ही काफी है दिल जलाने के लिए,

साकी आज पिला दो इतनी के कुछ होश न रहे,
कोई गम मेरे पास ना भटके मुझे रुलाने के लिए,

दुःख नहीं के कोई साथ नहीं रहा मेरे,
अब मैखाना ही काफी है मेरा साथ निभाने के लिए,

साकी यूं मुझे हर बार बस करने को ना कह,
आज सारा मैखाना भी कम है दिल की आग बुझाने के लिए...!!!

ले जाना...


मेरी रातों की राहत दिन का इत्मिनान ले जाना,
तुम्हारे काम आ जायेगा, ये सामान ले जाना,

तुम्हारे बाद क्या रखना आना से वास्ता कोई?
तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना,

शिकिस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो,
अगर तुम जोड़ सकते हो तो ये गुलदान ले जाना,

उधर अल्मारिओं में चाँद अव्राक परेशां हैं,
मेरे ये बाकिमंदा ख्वाब मेरी जान ले जाना,

तुम्हे ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते,
पुरानी दोस्ती है इसकी कुछ पहचान ले जाना,

इरादा कर लिया है तुमने गर सच मुच बिछड़ने का,
तो फिर अपने ये सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना,

अगर थोड़ी बहुत है शायरी से उनको दिलचस्पी,
तो उनके सामने तुम मेरा ये दीवान ले जाना...!!!

मुस्कुरा के रोये...!!!

मेरी दास्तां-ए-हसरत वो सुना सुना के रोये,
मेरे आजमाने वाले मुझे आजमा के रोये,

कोई ऐसा अहले-दिल हो के फ़साना-ए-मोहब्बत,
मैं उसे सुना के रोऊँ, वो मुझे सुना के रोये,

मेरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-नतावा की हसरत,
जिसे खोके शादमान थे, उसे आज पाके रोये,

तेरी बेवफाईओं पर, तेरी कज अदाईओं पर,
कभी सर झुका के रोये, कभी मुंह छुपा के रोये,

जो सुनाई अंजुमन में शब्-ए-गम की आप बीती,
कई रो के मुस्कुराए, कई मुस्कुरा के रोये...!!!

बार बार करे...!!!


इक आरज़ू ही पूरी परवरदिगार करे,
मैं देर से जाऊं वो मेरा इंतज़ार करे,

अपने हाथों से संवारे जुल्फें मेरी,
वो इतरा कर मोहब्बत का इकरार करे,

लिपट जाये मुझ से आलम-ए-मदहोशी में,
और जोश-ओ-जुनू में मोहब्बत का इज़हार करे,

हो शब् विसाल की ऐसी या रब,
के चूम के माता मुझे बेदार करे,

जब उसे छोड़ के मैं जाना चाहूँ,
वो रो के एक और लम्हे का इसरार करे,

क़सम खुदा की मैं किसी और की हो नहीं सकती,
ये वादा-ए-वफ़ा वो बार बार करे...!!!

इश्क में ऐसा भी हाल होना है.....


अभी तो इश्क में ऐसा भी हाल होना है,
के अश्क रोकना तुम से मुहाल होना है,

हर एक लब पे हैं मेरी वफ़ा के अफसाने,
तेरे सितम को अभी लाजवाल होना है,

तुम्हे तो खबर ही नहीं तुम तो लुट जाओगे,
तुम्हारे हिज्र में इक लम्हा साल होना है,

हमारी रूह पे जब भी अज़ाब उतरे हैं,
तुम्हारी याद को इस दिल की ढाल होना है,

कभी तो रोयेगा वो भी किसी की बाँहों में,
कभी तो उस की हँसी को ज़वाल होना है,

मिलेगी हम को भी अपने नसीब की खुशियाँ,
बस इंतज़ार है कब ये कमाल होना है,

हर एक शख्स चलेगा हमारी राहों पर,
मोहब्बत में हमें वो मिसाल होना है,

ज़माना जिस के ख़म-ओ-पेच में उलझ जाये,
हमारी जात को ऐसा सवाल होना है,

यकीन है मुझ को वो लौट आयेगा,
उसे भी अपने किये का मलाल होना है...!!!

आखिरी कहाँ होती है....


पहली तो हो, आखिरी कहाँ होती है,
उम्र मोहब्बत की, बूढी कहाँ होती है,

हो ताजगी सुबह में, हो जीने की आरज़ू,
ख्वाहिशें रात की पूरी कहाँ होती है,

न दुनिया से फुर्सत , न जन्नत से बैर,
हसरत-ए-आदम, थोड़ी कहाँ होती है,

हुक्मरान मेरे, क्यूँ कर सुने मेरी,
गुजारिशें अवाम की, ज़रुरी कहाँ होती है,

कहीं फ़िक्र काफिये की, कहीं ख्याल से खाली,
इस तरह साहेब, शायरी कहाँ होती है,

ग़ज़ल की गोद में, झूठ जायज़ हुए,
कोई लड़की भला परी, कहाँ होती है,

शायर से भला कैसे, तौहीन-ए-हुस्न हो,
कोई नज़र उसकी, बुरी कहाँ होती है...!!!

इक ही शहर में रहना ....


बातों बातों में बिछडने का इशारा करके,
खुद भी रोया वो बहुत हमसे किनारा करके,
सोचता रहता हूँ तन्हाई में अंजाम-ए-ख़ुलूस,
फिर उसी जुर्म-ए-मोहब्बत को दोबारा करके,
जगमगा दी है तेरे शहर की गलियां मैंने,
अपने हर अश्क को पलकों पे सितारा करके,
देख लेते हैं चलो हौसला अपने दिल का,
और कुछ रोज उसके साथ गुज़ारा करके,
इक ही शहर में रहना मगर मिलना नहीं,
देखते हैं ये अज़ीयत भी गवारा करके,

अगर कहो...

अगर कहो तो हाल दिल का सुनाऊं तुमको,
तमाम उम्र सामने बिठाऊं तुमको,

मेरे ज़ख्मों का हाल पूछो अगर जान-ए-जां,
तो इक इक ज़ख्म की तफसील सुनाऊं तुमको,

मौत की नींद से भी इक गहरी नींद होती है,
तेरी बाँहों का हो तकिया, तो दिखाऊं तुमको,

यही दुआ है के वो वक्त आये फिर इक बार,
तुम जो रूठो तो हाथ जोड़ कर मनाऊं तुमको,

हर शख्स में मुझे एक रकीब नज़र आता है,
बोल ए मेरे हम नवा किस किस की नज़र से बचाऊं तुमको...!!!

मुझको ये गम क्या होता है,


अश्कों के समंदर से गुजरा हूँ मैं,
दर्द-ए-अह्सास से भी गुज़र होता है अक्सर्,
फिर भी होंठों से मुस्कुराहट ना जुदा होता है,
कोई बता दे मुझको ये गम क्या होता है,

दिल की हसरतें भी दम तोड़ चुकी हैं,
सपनों की किर्चियां भी चुभी है मुझको,
आंखो से फिर भी एक चमक अयां होता है,
कोई बता दे मुझको ये गम क्या होता है,

बाग मेरा सारा अब सेहरा हुआ,
अब तो रेत में ही खुश्बू मैने ढूंढ लिया है,
कांटो से ही हुस्न-ए-गुल बयां होता है,
कोई बता दे मुझको ये गम क्या होता है,

वफाओं का जनाज़ा भी उठाया है मैने,
हुस्न-ए-इश्क़ को भी मैने कांधा दिया है,
कब्र के फूलों से खुश्बू कब जुदा होता है,
कोई बता दे मुझको ये गम क्या होता है...!!!

वो तुम तो नहीं हो....



सुन ली जो खुदा ने दुआ,
वो तुम तो नहीं हो,
दरवाजे पे दस्तक की सदा,
तुम तो नहीं हो,
सिमटी हुई, शरमाई हुई रात की रानी,
सोई हुई कलियों की हया,
तुम तो नहीं हो,
महसूस किया तुम को तो गीली हुई पलकें,
भीगे हुए मौसम की अदा,
तुम तो नहीं हो,
इन् अजनबी राहों में नहीं कोई भी मेरा,
किस ने मुझे यु अपना कहा,
तुम तो नहीं हो...!!!

दर्द वो जो मुस्कुरा दिया



सब से छुपा कर दर्द वो जो मुस्कुरा दिया,
उस की हंसी ने तो मुझको आज रुला दिया,

लेहजे से उठ रहा था इक दर्द का धुआं,
चेहरा बता रहा था के कुछ गंवा दिया,

आवाज में ठहराव था आंखो में नमी थी,
और कह रहा था के मैने सब कुछ भुला दिया,

जाने क्या उसको लोगों से थी शिकायतें,
तन्हाईयों के देश में खुद को बसा दिया,

खुद भी हमसे बिछड़ कर अधूरा सा हो गया,
मुझको भी इतने लोगों में तन्हा बना दिया...!!!

इजाज़त दे दो ....


खुद को इस दिल में बसाने की इजाज़त दे दो,
मुझ को तुम अपना बनाने की इजाज़त दे दो,

तुम मेरी ज़िंदगी का एक हसीन लम्हा हो,
फूलों से खुद को सजाने की इजाज़त दे दो,

तुम्हारी रात सी ज़ुल्फों में चांद सा चेहरा,
ये जान फिर तुम लुटाने की इजाज़त दे दो,

नही शौक 'तुम' को भूल जाने का मगर,
मुझे ये दुनिया भूल जाने की इजाज़त दे दो.

भूल जाता हूँ...!!!


नज़र जब तुम से मिलती है,
मैं खुद को भूल जाता हूं,
बस एक धड़कन धड़कती है,
मैं खुद को भूल जाता हूं,

तुम्हें मिलने से पहले मैं,
बहुत सजता संवरता हूँ,
मगर जब तुम संवरती हो,
मैं खुद को भूल जाता हूँ,

मैं अक्सर किताबों पे तेरा ही नाम लिखता हूँ,
मगर कुछ तुम जो लिखती हो मैं खुद को भूल जाता हूँ,
मैं अकसर ये ही कहता हूँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ,
मगर जब तुम ये कहती हो, मैं खुद को भूल जाता हूँ...!!!

तो फिर?


ये दर्द मिट गया तो फिर?
ये ज़ख्म सिल गया तो फिर?

बिछड़ कर सोचता हूँ मैं,
वो फिर से मिल गया तो फिर?

मैं तितलियों के शहर में,
रहूँ तो मुझ को फिक्र है,

वो फूल जो खिला नहीं,
वो फूल खिल गया तो फिर?

तन्हाई पर मुस्कुराते रहे


अजनबी शहर के अजनबी रास्ते,
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे,
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा,
तुम बहुत देर तक याद आते रहे,
ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे,
रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
ज़िंदगी हमें आज़माती रही,
और हम भी उसे आज़माते रहे,
ज़खम जब भी कोई ज़हन्-ओ-दिल पर लगा,
ज़िंदगी की तरफ इक दरीचा खुला,
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं,
चोट खाते रहे, गुनगुनाते रहे,
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया,
इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
कितनी यादों के भटके हुए कारवां,
दिल के ज़ख्मों के दर खटखटाते रहे...!!!

आदत नहीं रही


सिर झुकाने की आदत नहीं रही,
आंसू बहाने की आदत नहीं रही,
हम खो गये पछ्ताओगे बहुत,
हमारी लौट के आने की आदत नहीं रही,
तेरे दर पर मोहब्बत के सवाली बन जाते,
लेकिन हाथ फैलाने की आदत नहीं रही,
तेरी यादें हमको अज़ीज़ हैं बहुत,
मगर वक़्त गंवाने की आदत नहीं रही,
तुम सख्त दिल निकले क्या गिला करें हम,
शिक्वा-ए-दिल लब पे लाने की आदत नहीं रही,
बद् दुआ भी क्या करें हक़ में तुम्हारे,
हमें तो दिल भी दुखाने की आदत नहीं रही...!!!

गुज़रे ज़माने ढूँढ़ते है.....

किताबों में मेरे फ़साने ढूँढ़ते है,
नादाँ है गुज़रे ज़माने ढूँढ़ते है,

जब वोह थे॥! तलाश-इ-ज़िन्दगी भी थी,
अब तो मौत के ठिकाने ढूँढ़ते है,

कल खुद ही अपनी महफ़िल से निकाला था,
आज हुए से दीवाने ढूँढ़ते है,

मुसाफिर बे-खबर है तेरी आँखों से,
तेरे शहर में मैखाने ढूँढ़ते है,

तुझे क्या पता ऐ सितम धाने वाले,
हम तो रोने के बहाने ढूँढ़ते है,

उनकी आँखों को न देखो,
नए तीर है निशाने ढूँढ़ते है...!!!

मुझसे बिछड के


मुझसे बिछड के शहर में घुल मिल गया वो शख्स,
हालां के शहर भर से अदावत उसे भी थी,

वो मुझसे बढ़ के ज़ब्त का आदी था जी गया,
वरना हर इक सांस क़यामत उससे भी थी,

सुनता था वो भी सबसे पुरानी कहानियां,
शायद रफाक़तों की ज़रूरत उसे भी थी,

तन्हा हुआ सफर में तो मुझ पर खुला ये राज़,
साये से प्यार धूप से नफरत उसे भी थी,

मोहसिन मैं उससे कह न सका हाल-ए-दिल,
दर-पेश एक ताज़ा मुसीबत उसे भी थी...!!!

सोच लो...!!!

इश्क पागल कर गया तो क्या करोगे,
सोच लो,
सुष ऐसा हुआ तो क्या करोगे,
सोच लो,

साथ उसके हर कदम चलने की आदत,
किस लिए,
छोड़ कर वो चल दिया तो क्या करोगे,
सोच लो,

शोर बाहर है अभी इस वास्ते खामोश हो,
शोर अंदर से उठा तो क्या करोगे,
सोच लो,

बंद आँखों में अधूरा खाब बुनते हो,
मगर,
कोई इन में आ बसा तो क्या करोगे,
सोच लो,

दर दरीचे सब मुकाफिल कर बैठे हो,
मगर,
वो अचानक आ गया तो क्या करोगे,
सोच लो,

डूबते हुए सूरज का चेहरा और नक़्श-ए-पा,
जब वो मंज़र गम हुआ तो क्या करोगे,
सोच लो...!!!

अगर तुम ...


कई बदनामियां होती, कई इलज़ाम सर आते,
मगर ऐ काश हम दोनों, हमीं दोनों पे मर जाते,

अगर तुम खाब होते तो, तुम्हें आँखों में भर लेते,
ना सोया ,नींद से फिर जगते, हटा के मर जाते,

अगर तुम रौशनी होते, तो फिर अहसास की लौ से,
ज़मीं को छोड़ देते, मिल के दोनों चाँद पर जाते,

अगर तुम फूल होते तो, तुम्हारी खुशबु में रहते,
समंदर की तरह होते, तो हम तुम में उतर जाते,

हमारे खल-ओ-खड्ड कैसे हैं, ये अब तक नहीं देखा,
अगर तुम आइना होते तो, हम कितना संवर जाते,

तुम्हारे हुस्न पे पहरा, हमारे इश्क का होता,
जवां रखते सदा तुम को, अगर लम्हे ठहर जाते,

अगर सूरज ही होते, तो अपनी धुप की सूरत,
वजूद-ए-यार की धरती, पे शाही हम बिखर जाते...!!!

कभी दामन कभी पलकें भिगोना




कभी दामन कभी पलकें भिगोना किस को कहते हैं,
किसी मजलूम से पूछो के रोना किस को कहते हैं,


कभी मेरी जगह खुद को रखो फिर जान जाओगे,
के दुनिया भर के दुःख दिल में समोना किस को कहते हैं,


मेरी आँखे मेरा चेहरा एक दिन गौर से देखो,
मगर मत पूछना के वीरान होना किस को कहते हैं,


तुम्हारा दिल कभी अगर पिघले गम की हरारत से,
तुम्हे मालूम हो जाएगा के खोना किस को कहते हैं...!!!

दर्द के फूल भी खिलते है .........


दर्द के फूल भी खिलते है बिखर जाते है,
ज़ख़्म कैसे भी हो कुछ रोज़ में बहर जाते है,

उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी,
सर झुकाए हुए चुप चाप गुज़र जाते है,

रास्ता रोके खरी है यही उलझन कब से,
कोई पूछे तो कहे क्या की किधर जाते है,

नरम आवाज़ भली बातें मोहज्ज्ब लहजे,
पहली बारिश मैं ये रंग उतर जाते है,

Thursday, September 2, 2010

रुलाना हर किसी को आता है,



रुलाना हर किसी को आता है,
हसना किसी किसी को आता है,
रुला के जो माना ले वो सच्चा यार है,
रुला के खुद भी आंसू बहाए वो तुम्हारा प्यार है !!
आज हर एक पल खूबसूरत है,
दिल में मेरे सिर्फ तेरी सूरत है,
कुछ भी कहे ये दुनिया ग़म नहीं,
दुनिया से ज्यादा मुझे तेरी ज़रूरत है,
बार बार चाहे दिल रोता है,
पर इसमें भी चाहत का नशा होता है,
जितना चाहे बच लो,
पर ज़िन्दगी में एक बार प्यार जरूर होता है!!

मुझे मोहबत न करो ...!


इक इल्तज़ा है तुमसेके मेरे दोस्त बन जाओ,
और मुझे महोब्बत न करो.....!
ये तमन्ना है के मेरी ज़िन्दगी में आओ,
और मुझे महोब्बत न करो.......!
सिवा तुम्हारे कुछ सोचूँ,
मैं नही सोचता हूँ,
बता दु मगर रूबरू जब तुम हो
तो कुछ बोलूं मैं नहीं... !
काश ऐसा हो के मैं तुम,
और तुम मैं बन जाओ,
और मुझे महोब्बत ना करो.....!
अक्सर देखा है मोहबत को नाकाम होते हुए,
जीने के वादे किये फिरते , तनहा रोते हुए.......!
जो हमेशा साथ निभाए वो तो बस दोस्ती है,
जो कभी ना रुलाये वो तो बस दोस्ती है........!
यूँ ही देखा है बचपन की दोस्ती को बूढा होते हुए ,
न किए कभी वादे..पर हर वादे को पूरा होते हूए...
ये तमन्ना है के मेरी ज़िन्दगी में आओ और मुझे महोब्बत न करो...!
ये इल्तज़ा है के मेरे दोस्त बन जाओ और मुझे महोब्बत न करो......!
यु ही ता उमर मेरा साथ निभाओ और मुझे महोब्बत न करो............!


Thursday, August 26, 2010

हमसफ़र अभी सोच ले





मुझे याद कोई दुआ नहीं,मेरे हमसफ़र अभी सोच ले, तू मेरी जबीं पे लिखा नहीं,मेरे हमसफ़र अभी सोच ले,

अभी रास्ता भी है धुल में, अभी फायदा भी है भूल में,
अभी मुझे तुझसे गिला नहीं, मेरे हमसफ़र अभी सोच ले,

मैं जन्म जन्म से नाराज़ हूँ, मैं जन्म जन्म से उदास हूँ,
मैं कभी भी खुल के हँसा नहीं, मेरे हमसफ़र अभी सोच ले,

तू है ख्वाब ख्वाब पुकारता, मेरी आँख में नहीं अश्क भी,
मैं मुद्दतों से जिया नहीं, मेरे हमसफ़र अभी सोच ले,

तुझे खुशबुओं की है आरज़ू, तुझे रौशनी की है जुस्तजू,
मैं हवा नहीं, दिया नहीं, मेरे हमसफ़र अभी सोच ले,

तुझे आंसुओ का पता नहीं, तुझे रत'जगों का गुमां नहीं,
तुझे इस से आगे पता नहीं, मेरे हमसफ़र अभी सोच ले,

मुझे ढूँढता ही फिरेगा तू, ना जियेगा ना मरेगा तू,
मैं कभी भी घर पे मिला नहीं, मेरे हमसफ़र अभी सोच ले,

कहो लौटना है किसे यहाँ, मेरे दर्द सुन मेरे मेहरबां,
मेरे पास वक्त ज़रा नहीं, मेरे हमसफ़र अभी सोच ले...!!!

ऐसा हाल होना है


अभी तो इश्क में ऐसा भी हाल होना है,
के अश्क रोकना तुम से मुहाल होना है,

हर एक लब पे हैं मेरी वफ़ा के अफसाने,
तेरे सितम को अभी लाजवाल होना है,

तुम्हे तो खबर ही नहीं तुम तो लुट जाओगे,
तुम्हारे हिज्र में इक लम्हा साल होना है,

हमारी रूह पे जब भी अज़ाब उतरे हैं,
तुम्हारी याद को इस दिल की ढाल होना है,

कभी तो रोयेगा वो भी किसी की बाँहों में,
कभी तो उस की हँसी को ज़वाल होना है,

मिलेगी हम को भी अपने नसीब की खुशियाँ,
बस इंतज़ार है कब ये कमाल होना है,

हर एक शख्स चलेगा हमारी राहों पर,
मोहब्बत में हमें वो मिसाल होना है,

ज़माना जिस के ख़म-ओ-पेच में उलझ जाये,
हमारी जात को ऐसा सवाल होना है,

यकीन है मुझ को वो लौट आयेगा,
उसे भी अपने किये का मलाल होना है...!!!