ग़म को कितना समझती हो गी,
जिन राहो पर चलती हो गी ,
मेरी याद मैं तड्पती हो गी ,
मुझसे जो न कह सकती थी ,
अब वो खुद से कहती हो गी ,
गुजरी बाते गुज़रे लम्हें ,
याद कर के वो रोती हो गी ,
फुर्सत तुम को हो के न हो ,
ख़त फिर भी लिखती हो गी,
और लिख के, जलने से कुछ पहले ,
उन को वो खुद भी पढ़ती हो गी। "