कई बदनामियां होती, कई इलज़ाम सर आते,
मगर ऐ काश हम दोनों, हमीं दोनों पे मर जाते,
अगर तुम खाब होते तो, तुम्हें आँखों में भर लेते,
ना सोया ,नींद से फिर जगते, हटा के मर जाते,
अगर तुम रौशनी होते, तो फिर अहसास की लौ से,
ज़मीं को छोड़ देते, मिल के दोनों चाँद पर जाते,
अगर तुम फूल होते तो, तुम्हारी खुशबु में रहते,
समंदर की तरह होते, तो हम तुम में उतर जाते,
हमारे खल-ओ-खड्ड कैसे हैं, ये अब तक नहीं देखा,
अगर तुम आइना होते तो, हम कितना संवर जाते,
तुम्हारे हुस्न पे पहरा, हमारे इश्क का होता,
जवां रखते सदा तुम को, अगर लम्हे ठहर जाते,
अगर सूरज ही होते, तो अपनी धुप की सूरत,
वजूद-ए-यार की धरती, पे शाही हम बिखर जाते...!!!
मगर ऐ काश हम दोनों, हमीं दोनों पे मर जाते,
अगर तुम खाब होते तो, तुम्हें आँखों में भर लेते,
ना सोया ,नींद से फिर जगते, हटा के मर जाते,
अगर तुम रौशनी होते, तो फिर अहसास की लौ से,
ज़मीं को छोड़ देते, मिल के दोनों चाँद पर जाते,
अगर तुम फूल होते तो, तुम्हारी खुशबु में रहते,
समंदर की तरह होते, तो हम तुम में उतर जाते,
हमारे खल-ओ-खड्ड कैसे हैं, ये अब तक नहीं देखा,
अगर तुम आइना होते तो, हम कितना संवर जाते,
तुम्हारे हुस्न पे पहरा, हमारे इश्क का होता,
जवां रखते सदा तुम को, अगर लम्हे ठहर जाते,
अगर सूरज ही होते, तो अपनी धुप की सूरत,
वजूद-ए-यार की धरती, पे शाही हम बिखर जाते...!!!
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