मुझसे बिछड के शहर में घुल मिल गया वो शख्स,
हालां के शहर भर से अदावत उसे भी थी,
वो मुझसे बढ़ के ज़ब्त का आदी था जी गया,
वरना हर इक सांस क़यामत उससे भी थी,
सुनता था वो भी सबसे पुरानी कहानियां,
शायद रफाक़तों की ज़रूरत उसे भी थी,
तन्हा हुआ सफर में तो मुझ पर खुला ये राज़,
साये से प्यार धूप से नफरत उसे भी थी,
मोहसिन मैं उससे कह न सका हाल-ए-दिल,
दर-पेश एक ताज़ा मुसीबत उसे भी थी...!!!
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