Tuesday, September 7, 2010

इक ही शहर में रहना ....


बातों बातों में बिछडने का इशारा करके,
खुद भी रोया वो बहुत हमसे किनारा करके,
सोचता रहता हूँ तन्हाई में अंजाम-ए-ख़ुलूस,
फिर उसी जुर्म-ए-मोहब्बत को दोबारा करके,
जगमगा दी है तेरे शहर की गलियां मैंने,
अपने हर अश्क को पलकों पे सितारा करके,
देख लेते हैं चलो हौसला अपने दिल का,
और कुछ रोज उसके साथ गुज़ारा करके,
इक ही शहर में रहना मगर मिलना नहीं,
देखते हैं ये अज़ीयत भी गवारा करके,

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