Tuesday, September 7, 2010
तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते,
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे,
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा,
तुम बहुत देर तक याद आते रहे,
ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे,
रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
ज़िंदगी हमें आज़माती रही,
और हम भी उसे आज़माते रहे,
ज़खम जब भी कोई ज़हन्-ओ-दिल पर लगा,
ज़िंदगी की तरफ इक दरीचा खुला,
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं,
चोट खाते रहे, गुनगुनाते रहे,
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया,
इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
कितनी यादों के भटके हुए कारवां,
दिल के ज़ख्मों के दर खटखटाते रहे...!!!
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