Tuesday, September 7, 2010

गुज़रे ज़माने ढूँढ़ते है.....

किताबों में मेरे फ़साने ढूँढ़ते है,
नादाँ है गुज़रे ज़माने ढूँढ़ते है,

जब वोह थे॥! तलाश-इ-ज़िन्दगी भी थी,
अब तो मौत के ठिकाने ढूँढ़ते है,

कल खुद ही अपनी महफ़िल से निकाला था,
आज हुए से दीवाने ढूँढ़ते है,

मुसाफिर बे-खबर है तेरी आँखों से,
तेरे शहर में मैखाने ढूँढ़ते है,

तुझे क्या पता ऐ सितम धाने वाले,
हम तो रोने के बहाने ढूँढ़ते है,

उनकी आँखों को न देखो,
नए तीर है निशाने ढूँढ़ते है...!!!

No comments:

Post a Comment