किताबों में मेरे फ़साने ढूँढ़ते है,
नादाँ है गुज़रे ज़माने ढूँढ़ते है,
जब वोह थे॥! तलाश-इ-ज़िन्दगी भी थी,
अब तो मौत के ठिकाने ढूँढ़ते है,
कल खुद ही अपनी महफ़िल से निकाला था,
आज हुए से दीवाने ढूँढ़ते है,
मुसाफिर बे-खबर है तेरी आँखों से,
तेरे शहर में मैखाने ढूँढ़ते है,
तुझे क्या पता ऐ सितम धाने वाले,
हम तो रोने के बहाने ढूँढ़ते है,
उनकी आँखों को न देखो,
नए तीर है निशाने ढूँढ़ते है...!!!
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