दर्द के फूल भी खिलते है बिखर जाते है,
ज़ख़्म कैसे भी हो कुछ रोज़ में बहर जाते है,
उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी,
सर झुकाए हुए चुप चाप गुज़र जाते है,
रास्ता रोके खरी है यही उलझन कब से,
कोई पूछे तो कहे क्या की किधर जाते है,
नरम आवाज़ भली बातें मोहज्ज्ब लहजे,
पहली बारिश मैं ये रंग उतर जाते है,
ज़ख़्म कैसे भी हो कुछ रोज़ में बहर जाते है,
उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी,
सर झुकाए हुए चुप चाप गुज़र जाते है,
रास्ता रोके खरी है यही उलझन कब से,
कोई पूछे तो कहे क्या की किधर जाते है,
नरम आवाज़ भली बातें मोहज्ज्ब लहजे,
पहली बारिश मैं ये रंग उतर जाते है,
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