Tuesday, September 7, 2010

आखिरी कहाँ होती है....


पहली तो हो, आखिरी कहाँ होती है,
उम्र मोहब्बत की, बूढी कहाँ होती है,

हो ताजगी सुबह में, हो जीने की आरज़ू,
ख्वाहिशें रात की पूरी कहाँ होती है,

न दुनिया से फुर्सत , न जन्नत से बैर,
हसरत-ए-आदम, थोड़ी कहाँ होती है,

हुक्मरान मेरे, क्यूँ कर सुने मेरी,
गुजारिशें अवाम की, ज़रुरी कहाँ होती है,

कहीं फ़िक्र काफिये की, कहीं ख्याल से खाली,
इस तरह साहेब, शायरी कहाँ होती है,

ग़ज़ल की गोद में, झूठ जायज़ हुए,
कोई लड़की भला परी, कहाँ होती है,

शायर से भला कैसे, तौहीन-ए-हुस्न हो,
कोई नज़र उसकी, बुरी कहाँ होती है...!!!

2 comments:

  1. ये आपकी सारी की सारी रचनाओं के लिए है
    अब तक कहाँ थे आप, ये मेरी बदनसीबी कि इससे पहले आपकी रचनाओं को न देख सका
    ज़बरदस्त लेखन है ये तो, अद्भुत प्रभावी और बेहद अपना सा
    और लिखिए...खूब लिखिए.... इश्वर आप की लेखनी की इस खूबसूरती को लगातार आशीर्वाद देते रहें

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  2. यार मन नहीं भर रहा आपका लेखन कई बार पढ़ने के बाद भी
    बहुत दिल से लिखा है आपने और बेहद मेरे दिल को छू गया है आपका लेखन
    कुछ अपना प्रोफाइल तो बताएं
    यकीनन अपनी रचनाओ की तरह आप[ भी बेहद संवेदनशील व्यक्ति होंगे
    बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
    आनंद आ गया
    सच कहूं तो तारीफ को पूरे शब्द ही नहीं मिल पा रहे हैं

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